नई दिल्ली / पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक कुछ दिन बाद रिटायर होने वाले हैं। उनकी विदाई उस समय होगी जब राजधानी के एक जिले में हिंसा की आग पूरी तरह से अभी बुझी नहीं है। बीते छह महीने से उनका कार्यकाल सवालों के घेरे में भी रहा है। उनके नेतृत्व क्षमता पर तमाम तरह के सवाल भी उठाए गए। क्योंकि ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने फ्रंट पर आकर रोल अदा नहीं किया। शायद यही वजह थी कि दिल्ली पुलिस के जवानाें ने अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए न केवल मोर्चा खोल दिया था बल्कि पुलिस मुख्यालय का घेराव कर एक दिन का धरना भी दे दिया। कई बार गंभीर हालात दिल्ली में बने लेकिन उन्होंने कानून व्यवस्था के मसले पर खुलकर अपनी बातें नहीं रखीं। आज सोशल मीडिया का जमाना है, इस सबके बाद भी उन्होंने लोगों से दूरियां ही बनाकर रखीं। उनका ट्विटर अकाउंट इसका एक बड़ा उदाहरण है। उनकी ओर से कुछ खास अवसर पर ही ट्वीट किए गए।
बीते छह महीने के अंदर कभी जामिया-जेएनयू बवाल तो कभी वकील-पुलिस संघर्ष ने किया परेशान
शहर में हिंसा की लगातार घटनाएं सामने आती रहीं, लेकिन पुलिस उन्हें रोकने में नाकाम ही साबित हई। पुलिस ने बैकफुट पर ही नजर आई खड़े हाेकर कानून व्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश करती रही।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों को लाठी डंडे से बुरी तरह से मारा पीटा गया। जामिया विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में उनके साथ बर्बरता की गई। दोनों मामलों में दिल्ली पुलिस की निंदा हुई।
संभव है कि उनमें कुछ लोग बाहरी रहे होगें, लेकिन इस एक्शन का खामिया ऐसे कुछ निर्दोष छात्राें को भी भुगतना पड़ा जिनका बवाल से कोई लेना देना नहीं था।
तीस हजारी कोर्ट हिंसा मामले में भी रहा था ढूलमूल रवैया
पिछले साल तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों के बीच विवाद हो गया। कोर्ट में फायरिंग से लेकर आगजनी तक हो गई। महिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज तक से बुरा बर्ताव किया गया। इस मामले को लेकर भी पुलिस ने ढूलमूल रवैया ही अख्तियार किया। इसी तरह मुखर्जी नगर इलाके में एक धर्म विशेष से पुलिस का सीधे तौर पर आमना सामना हुआ। गाज सीधे निचले पुलिसकर्मियों पर गिरा दी गई। तीस हजारी कांड होने पर पुलिस कर्मियों का गुस्सा आला अफसरों के प्रति फूट गया, जिन्होंने उनके खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। शाहीनबाग धरने को भी ढाई महीने से ज्यादा समय हो चुका है।