भोपाल / मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन की बिसात ठीक उसी तरह बिछाई गई है, जिस तरह 8 महीने पहले जुलाई 2018 में कर्नाटक में उलटफेर हुआ था। कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों के गायब होने के बाद इस्तीफे हुए। मान मनौव्वल से लेकर सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद आखिर में विधानसभा के अंदर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन वाली कुमारस्वामी सरकार ने 23 दिन बाद विश्वास मत खो दिया था। एक सप्ताह से मध्यप्रदेश में भी ठीक कर्नाटक पैटर्न पर ही राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है। कर्नाटक में भी 1 विधायक के इस्तीफे से घटनाक्रम शुरू हुआ था, इसके बाद 16 विधायकों ने बगावत कर दी थी, जिसमें से 13 विधायक काफी दिनों तक अपना इस्तीफा देकर राज्य के बाहर जाकर बैठ गए थे।
मई 2018 में हुए चुनाव के बाद कर्नाटक में बनी सीटों की स्थिति
इस्तीफे और उपचुनाव के बाद बनी कर्नाटक की स्थिति
14 महीने की कुमार सरकार... 23 मई 2018 को कुमार स्वामी के नेतृत्व में भाजपा के 104 विधायकों के मुकाबले कांग्रेस-जेडीएस ने अपने 115, दो निर्दलीय और 1 बसपा विधायक को साथ लेकर सरकार बनाई थी। सिर्फ 14 महीने बाद ही यह सरकार गिर गई। जुलाई 2019 में कांग्रेस में बगावत की शुरूआत हुई थी।
ऐसे चला घटनाक्रम
1 जुलाई 2019 - कांग्रेस विधायक आनंद सिंह ने एक स्टील कंपनी को औने-पौने दाम में सरकारी जमीन बेचने के विरोध में इस्तीफा दिया। इसके बाद इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया।
7 जुलाई - कुमार स्वामी अमेरिका यात्रा से लौटे और मनाने के लिए मंत्रिमंडल के पुनर्गठन की योजना बनाई।
9 जुलाई - कांग्रेस ने विधायक दल की बैठक बुलाई, 20 विधायक इसमें नहीं पहुंचे। सरकार सुप्रीम कोर्ट गई।
18 जुलाई - भाजपा की ओर से बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।
23 जुलाई - कुमार स्वामी सरकार का विश्वास प्रस्ताव गिरा, उनके पक्ष में 99 वोट पड़े। विपक्ष में 105 वोट पड़े।
तख्तापलट के बाद- बागी विधायकों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। दिसंबर 2019 में हुए उपचुनाव में 15 में से 12 लोग भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते।