रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्रियों में रोजगार की भरमार

; कंपनियों के बाहर लगे "आवश्यकता" के बोर्ड



इंदौर / बेरोजगारी देश में बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ज्यादातर युवा रोजगार न मिलने से परेशान है, लेकिन इंदौर के रेडीमेड उद्योग सेक्टर की समस्या दूसरी है। यहां रोजगारों की कोई कमी नहीं है। फैक्ट्री संचालकों को कुशल कारीगरों की तलाश है। लगभग हर फैक्ट्री के बाहर "कर्मचारियों की जरूरत है" लिखा बोर्ड लगा हुआ है। मध्य प्रदेश में रेडीमेड कपड़े बनाने की 3200 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। इनमें से 2500 फैक्ट्री सिर्फ इंदौर में ही हैं।


जितने काम कर रहे, उतनों की ही जरूरत
रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्री के संचालक पवन पोरवाल बताते हैं कि उनके यहां जितने कर्मचारी काम कर रहे हैं लगभग उतने ही कर्मचारियों की और आवश्यकता है। रेडीमेड सेक्टर में ट्रेंड मजदूर तो मिलते ही नहीं है और जो अनस्किल्ड होते हैं उन्हें ट्रेंड करने के बाद वे आपके पास ही जॉब करेंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती है। मार्केट में प्रतियोगिता इतनी अधिक है कि ट्रेंड कर्मचारियों के लिए हर कोई अधिक मजदूरी देने को तैयार है, जिसके चलते स्किल्ड कर्मचारी एक कंपनी में अधिक समय तक कार्य नहीं करते।


80 फिसदी निर्माण इकाइयां इंदौर में
मध्य प्रदेश की 3200 से अधिक रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्री मे से 2500 इकाइयां इंदौर के आसपास है। 216 इकाइयां तो सिर्फ इंदौर के रेडीमेड कॉम्पलेक्स में ही हैं। इसके अलावा अन्य इकाइयां पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र, सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र, पालदा, पोलोग्राउंड आदि में कार्यरत है। मप्र रेडीमेड गारमेंट एसोसिएशन के अनुसार बड़ी कंपनियों को हटा दें तो इस सेक्टर का टर्नओवर मप्र में 1200 करोड़ रुपए से अधिक का है, जिसमें से इंदौर का योगदान 800 से 1000 करोड़ रुपए रहता है। इसके साथ ही रेडीमेड निर्माण सेक्टर द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 10 लाख लोगों को रोजगार भी प्राप्त होता है।


बेहतर वेतन से रिझाने की कोशिश
रेडीमेड गारमेंट इकाइयां बेहतर मेहनताना देकर वर्कस को रिझाने की कोशिश कर रही है। इन इकाइयों का कहना है कि पिछले दो साल की तुलना में स्किल्ड व अनस्किल्ड दोनों प्रकार के कर्मचारियों के मेहनतानें में बढ़ोतरी हो चुकी है। अनस्किल्ड कर्मचारियों को पहले जहां 4 से 5 हजार रुपए हर महीने दिए जाते थे। वहीं, अब उन्हें 7 से 8 हजार रुपए प्रतिमाह का भुगतान किया जा रहा है। इसी प्रकार स्किल्ड कर्मचरियों का वेतन भी 7000-8000 रुपए से बढ़कर फिलहाल कार्यक्षमता के अनुसार 10000-12000 रुपए हो गया है। 


दैनिक वेतन भोगियों का भी मेहनताना बढ़ा
दैनिक आधार पर कार्य करने वाले कर्मचारियों के मेहनताने में भी बढ़ोतरी की गई है। लगभग दो साल पहले एक शर्ट तैयार करने के बदले 20 से 25 रुपए का भुगतान किया जाता था, इसे बढ़कर 30 से 35 रुपए किया गया है। इंदौर रेडीमेड वस्त्र व्यापारी संघ के सचिव आशीष निगम ने बताया कि इन कर्मचारियों को आइटम की क्वालिटी के हिसाब से प्रति नग भुगतान किया जाता है। एक शर्ट तैयार करने का मेहनताना 30 रुपए से शुरू होता है जो क्वालिटी और डिजाइन के हिसाब से 125 रुपए दिया जाता है। एक कुर्ता तैयार करने का मेहनताना 70 रुपए से शुरू होता है जो डिजाइन और क्वालिटी के अनुसार 150 रुपए प्रति नग तक दिया जाता है।


एटीडीसी तैयार कर रहा कौशल विकास
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अपेरल ट्रेंनिंग एंड डिजाइन सेंटर (एटीडीसी) रेडीमेड निर्माण में स्किल्ड कर्मचारियों को तैयार करता है। इंदौर में यह रेडीमेड कॉम्पलेक्स में ही स्थित है। हालांकि, इसने जितने कर्मचारियों को ट्रेंड किया जा रहा है, उसके मुकाबले इंडस्ट्री में मांग काफी अधिक है। एटीडीसी इंदौर की प्राचार्या प्रीति सर्वा के अनुसार रेडीमेड निर्माण सेक्टर में कुशल कर्मचारियों की कमी हमेशा रहती है। वर्तमान में हमारे पास सुभव टेक्सटाइल, ला-पनासे टेक्सटाइल, आमोद गारमेंट, ट्रेंड अपेरल प्रायवेट लिमीटेड, कालानी ट्रेडर्स, द मर्चेन्ट आदि कंपनियों की डिमांड है। इस प्रकार की डिमांड साल भर बनी रहती है, इंदौर के आसपास स्थित लगभग हर रेडीमेड गारमेंट निर्माता कंपनी को कुशल मजदूरी की आवश्यकता है। एटीडीसी के अनुसार वे जितने कर्मचारी इंडस्ट्री के लिए तैयार करते हैं उनमें से 60 फीसदी ही इंडस्ट्री में जाते हैं शेष अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के चलते जॉब नहीं कर पाते हैं।